कानपुर सहित यूपी के 26 जिलों के बीएसए पर सरकार की सख्ती – शिक्षकों के स्थानांतरण कार्यों में लापरवाही पर नोटिस
उत्तर प्रदेश में शिक्षा विभाग ने 26 जिलों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों (बीएसए) को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इन बीएसए पर आरोप है कि इन्होंने शिक्षकों के पारस्परिक स्थानांतरण (Mutual Transfer) से संबंधित कार्यों में लापरवाही बरती है। इन अधिकारियों पर शिक्षकों के आवेदन पत्रों का समय पर सत्यापन न करने और स्थानांतरण प्रक्रिया में देरी करने का आरोप है। इस कारण राज्य भर में कई शिक्षक नाराज हैं, और स्थानांतरण कार्य बाधित हो रहे हैं।
मुख्य मुद्दा क्या है?
हर साल उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को पारस्परिक स्थानांतरण की सुविधा दी जाती है। इस प्रक्रिया के तहत शिक्षक आपसी सहमति से एक-दूसरे की जगह पर ट्रांसफर के लिए आवेदन करते हैं। इस आवेदन के सत्यापन की जिम्मेदारी बीएसए की होती है। सत्यापन के बाद ही इनका ट्रांसफर आगे बढ़ पाता है।
लेकिन इस साल राज्य के 26 जिलों के बीएसए अपने-अपने जिलों से आए शिक्षकों के ट्रांसफर आवेदन की सत्यापन प्रक्रिया में ढिलाई बरत रहे हैं। शिक्षा विभाग का कहना है कि बीएसए या तो सत्यापन करते ही नहीं हैं या समय पर कार्यवाही नहीं करते, जिससे पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली बाधित हो रही है।
कौन-कौन से जिले हैं इस लापरवाही में शामिल?
जिन जिलों के बीएसए को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है, उनमें शामिल हैं:
गोंडा
रायबरेली
सुल्तानपुर
अंबेडकरनगर
बहराइच
वाराणसी
मिर्जापुर
महोबा
मैनपुरी
मथुरा
मुरादाबाद
औरैया
चंदौली
इटावा
संतकबीरनगर
शामली
उन्नाव
आगरा
बलरामपुर
फतेहपुर
हापुड़
जौनपुर
कानपुर नगर
महाराजगंज
सम्भल
गाज़ीपुरशिक्षा निदेशक की नाराजगी
शिक्षा निदेशक प्रताप सिंह बघेल ने साफ कहा है कि इन बीएसए अधिकारियों को अपने कार्यों में रुचि नहीं है। इनकी उदासीनता के कारण शिक्षकों को परेशानी हो रही है और स्थानांतरण की प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब हो रहा है।
निदेशक ने स्पष्ट किया कि यह एक संवेदनशील प्रक्रिया है और इसमें किसी प्रकार की देरी या लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने सभी संबंधित बीएसए को 16 मई तक जवाब देने का निर्देश दिया है। अगर जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया, तो विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
आखिर सत्यापन क्यों है जरूरी?
पारस्परिक स्थानांतरण की प्रक्रिया में सबसे अहम हिस्सा होता है – आवेदन पत्रों की पुष्टि और दस्तावेजों का सत्यापन। अगर किसी शिक्षक की जानकारी गलत होती है या वह तय मापदंडों पर खरा नहीं उतरता, तो उसके ट्रांसफर पर रोक लग जाती है। इसी वजह से सत्यापन में देरी होने पर सैकड़ों शिक्षक प्रभावित हो रहे हैं।
शिक्षकों में बढ़ रहा आक्रोश
राज्य भर में शिक्षक संघों और संगठनों ने बीएसए की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि जब शिक्षा विभाग ने पहले ही समय-सीमा तय कर दी है, तब बीएसए क्यों देरी कर रहे हैं? इससे न सिर्फ शिक्षकों का भविष्य प्रभावित हो रहा है, बल्कि उनके पारिवारिक और मानसिक जीवन पर भी असर पड़ रहा है।
कुछ जिलों में शाम तक भी नहीं हुआ सत्यापन
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कई जिलों जैसे औरैया, उन्नाव और कानपुर नगर में शिक्षकों के आवेदन सत्यापन का कार्य शाम तक भी नहीं किया गया। इससे स्पष्ट है कि जिम्मेदार अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे हैं।
सरकार की नई सख्ती
अब शिक्षा विभाग ने तय किया है कि अगर बीएसए अधिकारियों ने समय पर जवाब नहीं दिया और प्रक्रिया में सुधार नहीं किया, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। इसमें वेतन रोकने, तबादला करने या निलंबन जैसी कार्रवाई भी शामिल हो सकती है।
अधिकारियों के काम में रुचि की कमी
शिक्षा विभाग ने कहा है कि इन बीएसए अधिकारियों की कार्यशैली यह दर्शाती है कि उन्हें अपने कार्यों में कोई रुचि नहीं है। जब कोई अधिकारी अपने दायित्व को गंभीरता से नहीं लेता, तो उसका सीधा प्रभाव शिक्षा व्यवस्था पर पड़ता है। शिक्षकों के स्थानांतरण जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया में रुचि न लेना प्रशासनिक लापरवाही की श्रेणी में आता है।
निदेशक की सख्त चेतावनी
शिक्षा निदेशक ने यह भी कहा है कि बीएसए अधिकारी विभागीय निर्देशों का पालन करें और हर हाल में सत्यापन का कार्य निर्धारित समय में पूरा करें। उन्होंने चेताया कि अब विभाग बार-बार समय सीमा नहीं बढ़ाएगा।
समाप्ति और निष्कर्ष
यह पूरी घटना उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में जवाबदेही और पारदर्शिता की आवश्यकता को उजागर करती है। अगर अधिकारी अपने कार्यों में रुचि नहीं लेंगे और समय पर दायित्व नहीं निभाएंगे, तो इसका सीधा असर शिक्षकों और अंततः विद्यार्थियों पर पड़ेगा।
शिक्षा विभाग की यह सख्ती स्वागत योग्य कदम है, लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी लापरवाही न हो। इसके लिए अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के साथ-साथ तकनीकी रूप से पारदर्शी प्रणाली विकसित करनी चाहिए, जिससे शिक्षकों के स्थानांतरण जैसे कार्य बिना किसी अड़चन के हो सकें।
नोट: यह मेटा विवरण एक समाचार चित्र पर आधारित है, जिसमें 17 मई 2025 की तारीख का उल्लेख है और यह रिपोर्ट "स्वराज इंडिया" समाचार पत्र में प्रकाशित हुई है।
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